"आठवीं कड़ी : ठिकाणो / प्रमोद कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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ठिकाणो के हुवै?
चलो म्हैं पूछूं
स्याणो के हुवै?
कोई स्याणो मिलज्यै
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर री जात रो
तो रहस आपै ई प्रगटै सूरज अर परभात रो
आपै ई गवाड़ी अर गाम बसज्यै
आपै ई सीता अर राम बसज्यै
आपै ई फळापै आंबै री डाळ पर आम
आपै ई लागज्यै लोगबाग काम
हाथ हालण लागज्यै
बात चालण लागज्यै
चरखा चूं-चुर्राहट करै
कुतड़ा भी गुर्राहट करै
मुंडेरां पर दिया जगै
चौपाळां हिया जगै
चूल्हां अर भूख जगण लागै
नींद’र सुपना ठगण लागै
दिन-रात मुळकता-सा लागै
सुख-दुख टुळकता-सा लागै
काम लागै हथाई-सो
मिलणो लागै कमाई-सो
भींत्यां पर छिपकल्यां गीत गावै
टीटण भी फळसै तांई रीत निभावै
बठै जंगळ मांय मंगळ हुवै
कठै मुलक रा दंगळ हुवै
ढाई आखर हुवै परेम रा
लोग पूरा हुवै नितनेम रा
टैमसर मेह हुवै
टैमसर काळ
टैमसर खेजड़ी
टैमसर जाळ
टैमसर आंटो
टैमसर बांटो
टैमसर धीणै री धार हुवै
टैमसर गरमागरम चाय त्यार हुवै
टैमसर टाबर इस्कूल पूगै
टैमसर प्रेमियां रा फूल पूगै
टैमसर उगाही हुवै
टैमसर सुलह-सफाई हुवै
पंचां री जिग्यां पंच हुवै
फैसला जठै सो टंच हुवै
भाखा मांय कोई हीणो ना पड़ै
अबखाई में किणनै ई जीवणो ना पड़ै
ठा नीं-
के-के बातां
अमर है म्हारै ठिकाणै री
रियासत उदाहरण है
साम्हीं बीकाणै री
गंगासिंघजी अठै गंगनहर ल्याया
दुनिया रै नक्सै पर ओ स्हैर ल्याया
नींतर स्हैरां मांय के पड़्यो है
-झड़्यो है
जदकै अड़ंगो बठैई सारो
पण राजस्थानी स्हैरां रो
पेरिस भी सानी है
क्यूंकै हरेक स्हैर रो
अठै अैतिहासिक मानी है
ओ ईज राजस्थान
म्हारो ठिकाणो है
पण आपरै ई गांव मांय
कद म्हारो जाणो है
दिन-रात आ ईज सोचूं
अर बैठी-बैठी आपरा बाळ नोचूं
कदास,
म्हनैं स्याणो मिलज्यै!
आंधां मांय
कोई काणो मिलज्यै!