भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरा खूने-जिगर होने को है फिर / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
दिये का तेल सारा जल चुका है | दिये का तेल सारा जल चुका है | ||
− | बस इक रक्से-शरर होने को है फिर | + | बस इक रक्से-शरर<ref>लौ का निरित्य</ref> होने को है फिर |
− | तख़य्युल अब मुजस्सम हो चला है | + | तख़य्युल<ref>कल्पना</ref> अब मुजस्सम<ref>रूपधरना</ref> हो चला है |
− | ‘अना’ तू बेहुनर होने को है फिर</poem> | + | ‘अना’ तू बेहुनर होने को है फिर |
+ | </poem> | ||
+ | {{KKMeaning}} |
14:30, 26 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
मेरा खूने-जिगर होने को है फिर
कोई तिरछी नज़र होने को है फिर
तिरी खुश्बू ज़बां को छू रही है
ये लहजा मोतबर होने को है फिर
किसी की आंख में फिर बस गया हूं
जज़ीरे पर गुज़र होने को है फिर
हुजूमे-दिलबराँ फिर दिल में उमड़ा
ये गांव इक नगर होने को है फिर
ये आँसू गर्मतर होने लगे हैं
ज़माने को ख़बर होने को है फिर
कहानी में दरार आने लगी है
ये क़िस्सा मुख़्तसर होने को फिर
दिये का तेल सारा जल चुका है
बस इक रक्से-शरर<ref>लौ का निरित्य</ref> होने को है फिर
तख़य्युल<ref>कल्पना</ref> अब मुजस्सम<ref>रूपधरना</ref> हो चला है
‘अना’ तू बेहुनर होने को है फिर
शब्दार्थ
<references/>