भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
फैसला ठीक है निभायें क्या | फैसला ठीक है निभायें क्या | ||
− | चश्मेनम का अजीब मौसम है | + | चश्मेनम<ref>भीगी आँख </ref> का अजीब मौसम है |
− | शाम,झीलें,शफ़क़,घटायें क्या | + | शाम,झीलें,शफ़क़<ref>लालिमा </ref>,घटायें क्या |
बाल बिखरे हुये, ग़रीबां चाक | बाल बिखरे हुये, ग़रीबां चाक | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
तेरे बाजू में बैठ जायें क्या | तेरे बाजू में बैठ जायें क्या | ||
− | झूठ पर झूठ कब तलक वाइज़ | + | झूठ पर झूठ कब तलक वाइज़<ref>मौलाना</ref> |
झूठ बातों पे सर हिलायें क्या | झूठ बातों पे सर हिलायें क्या | ||
− | <poem> | + | </poem> |
+ | {{KKMeaning}} |
19:47, 26 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या
फैसला ठीक है निभायें क्या
चश्मेनम<ref>भीगी आँख </ref> का अजीब मौसम है
शाम,झीलें,शफ़क़<ref>लालिमा </ref>,घटायें क्या
बाल बिखरे हुये, ग़रीबां चाक
आ गयीं शहर में बलायें क्या
अश्क़ झूठे हैं,ग़म भी झूठा है
बज़्मेमातम में मुस्कुरायें क्या
हो चुका हो मज़ाक तो बोलो
अपने अब मुद्दआ पे आयें क्या
ख़ाक कर दें जला के महफ़िल को
तेरे बाजू में बैठ जायें क्या
झूठ पर झूठ कब तलक वाइज़<ref>मौलाना</ref>
झूठ बातों पे सर हिलायें क्या
शब्दार्थ
<references/>