भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ये शबे-अख़्तरो-क़मर चुप है / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> ये शबे-अख़्तरो-…) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | ये शबे-अख़्तरो-क़मर चुप है | + | ये शबे-अख़्तरो-क़मर<ref>चाँद तारों भरी रात </ref> चुप है |
एक हंगामा है मगर चुप है | एक हंगामा है मगर चुप है | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
पहले कितनी पुकारें आती थीं | पहले कितनी पुकारें आती थीं | ||
− | चल पड़ा हूँ तो रहगुज़र चुप है | + | चल पड़ा हूँ तो रहगुज़र<ref>रास्ता </ref> चुप है |
बस ज़बाँ हाँ कहे ये ठीक नहीं | बस ज़बाँ हाँ कहे ये ठीक नहीं | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 22: | ||
साथ तेरे ज़माना बोलता था | साथ तेरे ज़माना बोलता था | ||
− | तू नहीं है तो हर बशर चुप है | + | तू नहीं है तो हर बशर<ref>आदमी </ref> चुप है |
− | बर्क़ ख़ामोश, ज़मज़मे ख़ामोश | + | बर्क़<ref>बिजली </ref> ख़ामोश, ज़मज़मे<ref>सुरीला गायन </ref> ख़ामोश |
शायरी का हरिक हुनर चुप है | शायरी का हरिक हुनर चुप है | ||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
बात कुछ तो है, तू अगर चुप है | बात कुछ तो है, तू अगर चुप है | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | {{KKMeaning}} |
20:14, 26 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
ये शबे-अख़्तरो-क़मर<ref>चाँद तारों भरी रात </ref> चुप है
एक हंगामा है मगर चुप है
चल दिए क़ाफ़िले कयामत के
और दिल है कि बेख़बर चुप है
उनके गेसू और इस क़दर बरहम
इक तमाशा और इस क़दर चुप है
पहले कितनी पुकारें आती थीं
चल पड़ा हूँ तो रहगुज़र<ref>रास्ता </ref> चुप है
बस ज़बाँ हाँ कहे ये ठीक नहीं
क्या हुआ क्यों तिरी नज़र चुप है
साथ तेरे ज़माना बोलता था
तू नहीं है तो हर बशर<ref>आदमी </ref> चुप है
बर्क़<ref>बिजली </ref> ख़ामोश, ज़मज़मे<ref>सुरीला गायन </ref> ख़ामोश
शायरी का हरिक हुनर चुप है
राज़ कुछ तो है इस ख़मोशी का
बात कुछ तो है, तू अगर चुप है
शब्दार्थ
<references/>