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"बस एक शख्स ऐसा हो , जो टूट कर वफ़ा करे / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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02:11, 30 अप्रैल 2014 का अवतरण

बस एक शख्स ऐसा हो , जो टूट कर वफ़ा करे
उठाए हाथ जब भी वो, मेरे लिए दुआ करे

अकेले बैठूं जो कभी मैं, खुद को सोचती हुई
तो मेरी आँखें मूँद कर, वो पीछे से हंसा करे

मुझे बताए ग़लतियाँ, दिखाए भी वो रास्ता
वो बन के आइना, मुझे हर एक पल दिखा करे

मुझे खफा करे भी वो , मना भी ले दुलार से
जो खिलखिला के हंस पडूँ, तो एकटक तका करे

वो ख़्वाब पूरे होंगे कब, ये 'श्रद्धा' जानती नहीं
कज़ा से पहले दो घड़ी ख़ुशी की, रब अता करे