भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लदा-फँदा वसन्त / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('Category:हाइकु <poem> चोका डॉ सुधा गुप्ता पीले फूलों से लदा...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[Category:हाइकु]] | [[Category:हाइकु]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | |||
पीले फूलों से | पीले फूलों से | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 34: | ||
अकेले रास्ते | अकेले रास्ते | ||
अब खिली सेवती | अब खिली सेवती | ||
− | + | निर्व्याज हँसी ! | |
रोम-रोम भीगा है ! | रोम-रोम भीगा है ! | ||
आँसुओं का डेरा है ! ! | आँसुओं का डेरा है ! ! |
01:14, 2 मई 2014 के समय का अवतरण
पीले फूलों से
लदा-फँदा वसन्त
तितली पीछे
दौड़ता,कनेर का
मधु चूसता
सीपी –कौड़ी बीनता
फूल –पाँखुरी
किताबों में सुखाता
न जाने कहाँ
चुपके से खो गया !
सुर्ख़ गुलाब
खिले खिलते गए
मौसम जो था !
डाली पर झूमते
खिलखिलाते
महक से लुभाते
लोभी भँवरा
पास था , इतराते
वक़्त की मार
रंग-रूप खोकर
मुरझाकर
धूल की भेंट चढ़े !
शीत-प्रकोप
हाड़-हाड़ कँपाता
घना कोहरा
नज़र नहीं आता
दूर-पास का
न कोई हमराही
न संग –साथ
दुर्वह बोझ ढोते
अकेले रास्ते
अब खिली सेवती
निर्व्याज हँसी !
रोम-रोम भीगा है !
आँसुओं का डेरा है ! !
-0-
24 फ़रवरी , 2014