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"उपजाये तो क्या उपजायें-तीन / ओम नागर" के अवतरणों में अंतर

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18:51, 7 मई 2014 के समय का अवतरण

उपजायें तो क्या उपजायें
क्या यूं ही भूख बो कर
काटते रहेंगे खुदकुशियों की फसल।

या फिर
जिस दरांती से काटते आएं है फसल
उसी दरांती से काट डाले
प्रलोभनों के फंद
साहूकार-सफेदपोशों के गले।

उपजायें तो क्या उपजायें
क्या यूं ही सिसकियां और रूदन बो कर
आंसूओं से सिंचतें रहे धरा।

या फिर
इंकलाब की हुंकार से
धराशाही कर दे चमचमातें महल
चटका दे संगमरमरी आंगन।

उपजायें तो क्या उपजायें
क्या पसीने से सिंचकर उगा दें
रक्तबीज।

या फिर
निकल पड़ें नया इतिहास गढ़ने।