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"मकड़ी रो जाळो / घनश्याम नाथ कच्छावा" के अवतरणों में अंतर

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जीवण
जियां-
मकड़ी रो जाळो।
 
मकड़ी बणावै
आपरो जाळ
फंसै
उणरै मांय आय’र
मोकळा जीव मतैई।
 
माया री मकड़ी
गूंथै जीवण रो जाळ
फंस ज्यावै लोभी जीव
इणरै मांय आय’र मतैई
गुंधळीजै
अंतस री आंख्यां
दीसै कोनी पछै कीं।