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"आत्मा बिकती है / राजेन्द्र जोशी" के अवतरणों में अंतर
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दूर तक फैला हुआ रेतीला समंदर
इसमें मन के मोती हैं
मन यहां रमता है
यहां बना एक शहर
हजार हवेलियों का
ये हवेलियां कोरे पत्थरों से नहीं
मन से बनी है
हवेलियों में आत्मा हैं
आत्मा बोलने लगी
बोली जो लगने लगी
बिकने लगी आत्मा
कोई तो आगे बढ़ें ,
सौदागरों को रोको
बचा लो
बिकती आत्मा को
शान हैं हजार हवेलिया
हमारे शहर की!