भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सखी मेरी नींद नसानी हो / मीराबाई" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhajan}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:56, 15 मई 2014 के समय का अवतरण
सखी मेरी नींद नसानी हो।
पिवको पंथ निहारत सिगरी रैण बिहानी हो।
सखियन मिलकर सीख द मन एक न मानी हो।
बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय ऐसी ठानी हो।
अंग-अंग ब्याकुल भ मुख पिय पिय बानी हो।
अंतर बेदन बिरहकी कोई पीर न जानी हो।
ज्यूं चातक घनकूं रटै मछली जिमि पानी हो।
मीरा ब्याकुल बिरहणी सुध बुध बिसरानी हो।