भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सैसव जीवन दुहु सिलि गेल / विद्यापति" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatMaithiliR...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:22, 18 मई 2014 के समय का अवतरण
सैसव जीवन दुहु सिलि गेल।
श्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।।
वचनक चातुरि नहुनहु हास।
धरनिये चान कयल परकास।।
मुकुर हाथ लय करम सिंगार।
सखइ पूछय कइसे सुरत-विहार।।
निरंजन अपन पयेचर हेरि।।
पहिले बदरि सम पुन नवरंग।
दिन-दिन अनंग अगोरल अंग।।
माधव पेखल अपरुब बाला।
सैसव जौवन दुहु एक भेला।।
विद्यापति कह तुहु अगेआनि।
दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।