भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"था रवानी से ही कायम उसकी हस्ती का सुबूत / अखिलेश तिवारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अखिलेश तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:00, 19 मई 2014 के समय का अवतरण
था रवानी से ही कायम उसकी हस्ती का सुबूत
गर ठहर जाता तो फिर दरिया कहाँ होने को था
खुद को जो सूरज बताता फिर रहा था रात को
दिन में उस जुगनू का अब चेहरा धुआं होने को था
जाने क्यूँ पिंजरे की छत को आसमां कहने लगा
वो परिंदा जिसका सारा आसमां होने को था