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कोण गती ब्रिजनाथ । अब मोरी कोण गती ब्रिजनाथ ॥ध्रु०॥
भजनबिमुख अरु स्मरत नही । फिरत विषया साथ ॥१॥
हूं पतीत अपराधी पूरन । आचरु कर्म विकार ॥२॥
काम क्रोध अरु लाभ । चित्रवत नाथ तुमही ॥३॥
विकार अब चरण सरण लपटाणो । राखीलो महाराज ॥४॥
सूरदास प्रभु पतीतपावन । सरनको ब्रीद संभार ॥५॥