भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
}}
 
}}
{{KKCatKavita}}
+
{{KKCatArti}}
 +
{{KKAnthologyRam}}
 
<poem>
 
<poem>
 
श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।
 
श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।
पंक्ति 19: पंक्ति 20:
 
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन रंजनम्।
 
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन रंजनम्।
 
मम् हृदय-कंज-निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनम्।।
 
मम् हृदय-कंज-निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनम्।।
 
मनु जाहि राचेउ निलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
 
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।
 
 
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
 
तुलसी भवानिह पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
 
 
सोरठा-जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
 
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।
 
 
</poem>
 
</poem>

13:13, 23 मई 2014 के समय का अवतरण

श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्।।

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरम्।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक-सुतानरम्।।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य-वंश-निकंदनम्।
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनम्।।

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खर-दूषणम्।।

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन रंजनम्।
मम् हृदय-कंज-निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनम्।।