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17:10, 25 मई 2014 के समय का अवतरण

तुम्हारे शब्द
भावना की स्वर्णिम गिन्नी हैं
ह्रदय के टकसाल में निर्मित
प्रेम के
एक ही सिक्के हैं हम दोनों
जिसकी
पहचान और धातु एक है।
अपने संबंधों के लिए
रची है मैंने
एक अनूठी भाषा
जिसके शब्द
रातों के एकांत
और नींद के सपनों ने रचे हैं
अपना प्रेम
अलौकिक प्रणय नदी का
लौकिक तट
प्रणय की पूर्णिमा का
सौंदर्यबोधी चाँद
मन-भीतर पिघल कर
रुपहला समुद्र बन कर
समा जाता है
आँखों की पृथ्वी में
अपनी जगह बनाते हुए
महासागर की तरह...।