भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अनुभूति-रहस्य / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:25, 25 मई 2014 के समय का अवतरण
प्रेम के क्षणों में
अनुभूतियों का सुख रहस्यमय होता है।
तुम्हारे सुख का रिसता हुआ रस
मेरे प्रणय का रस है
जो तुमसे होकर मुझ तक पहुँचता है।
प्रेम एकात्म अनुभूतियों की
अविस्मरणीय दैहिक पहचान है।
प्रेम में मन
सपने सजाता है तन के लिए
प्यार में मन-तन
वसुधा से समुद्र बन जाता है
देह की धरती समा जाती है
मन के समुद्र में
एक दूसरे में
अनन्य राग।
अनुराग की साँसों में
माटी से पानी में बदल जाती है
संपूर्ण देह।
देह के भीतर के बर्फीले पर्वत
बादल की तरह उड़ने लगते हैं देहाकाश में
इन्द्रधनुषी इच्छाओं के बीच।
प्रेम में
भाषा का कोई काज नहीं होता है
प्यार ही प्यार की भाषा है
देश-काल की सीमाओं से परे...।