भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुछ भाव दृश्य / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:50, 25 मई 2014 के समय का अवतरण
राग की आग
राग की आग
भिजोती है
और अपनी
आर्द्रता में दग्ध करती है।
अर्क
देखती हूँ
प्रणय के चाँद को
एकटक
कि चाँदनी का अर्क
उतर आए
प्रणय की तरह।
प्रणयाकाश
प्रेम
मन को परत-दर-परत
खोलता है
और रचता है आकाश।
हथेली
प्रणय
हथेली में
रखा हुआ
मधु-पुष्प है
साथ उड़ान की शक्ति
रचता है
शब्दों में
पृथ्वी का कोमलतम स्पर्श
सारी क्रूरताओं के विरूद्ध।