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17:50, 25 मई 2014 के समय का अवतरण

राग की आग



राग की आग
भिजोती है
और अपनी
आर्द्रता में दग्ध करती है।

अर्क



देखती हूँ
प्रणय के चाँद को
एकटक
कि चाँदनी का अर्क
उतर आए
प्रणय की तरह।

 प्रणयाकाश



प्रेम
मन को परत-दर-परत
खोलता है
और रचता है आकाश।

 हथेली



प्रणय
हथेली में
रखा हुआ
मधु-पुष्प है

साथ उड़ान की शक्ति



रचता है
शब्दों में
पृथ्वी का कोमलतम स्पर्श
सारी क्रूरताओं के विरूद्ध।