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"थाप की परतें / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर

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17:58, 25 मई 2014 के समय का अवतरण

तुम्हारे ओझल होते ही
सब कुछ ठहर जाता है
सिर्फ साँसें पार करती हैं समय
निःस्पृह होकर

तुम्हारे साथ के बाद
कोई गीत के बोल
नहीं रुकते हैं ओठों पर।

तुम्हारी रूमाल की परतों में
हथेली के स्पर्श की परतें हैं
और वहीं से दिखते हो तुम
मुझमें मेरी ओर आते हुए
जैसे उदय होता है सूरज।