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"अंतःसलिला / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर
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प्रेम में
खुलती है
प्रेम की देह।
देह-भीतर
अन्वेषित होती है
प्रणय अंतःसलिला।
कमल-पुष्पों की सुगंध से
सराबोर होता है
देह का सुकोमल वन।