भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"योग साधना / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:19, 26 मई 2014 के समय का अवतरण

प्यार की
पहली सिहरन में
मुँदी पलकों के भीतर
जगी आँखों ने जाना
देह-भीतर
देह का जादू।

खामोश शब्दों ने किलक कर
जन्म लिया
नवानुभूति से भरकर।

अनुभूति की उड़ान-सुख में
अनुभव किया
अपनी ही देह का अमृतस्राव
प्रिय अधर में।

चाँद निहारने वाली आँखों ने
जाना चाँद का सुख
जो साधना के योग से मिलता है
भोग की साधना से नहीं।

तुम्हारे स्पर्श ने
पिलाया है प्यार का अमृत
अपने स्पर्श में
भर लेना चाहती हूँ तुम्हारे अंतरंग का रोम-रोम।