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औरत सहती रहती है
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उजाला
और चुप रहती है  
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बोलता है चुपचाप
जैसे रात।
+
शब्द
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जिसको दिखना-दिखाना है।
  
औरत सुलगती रहती है
+
उजाला
और शांत रहती है  
+
खोलता है चुपचाप
जैसे चिंगारी।
+
रहस्य
 +
जो उसके विरुद्ध हैं।
  
औरत बढ़ती रहती है  
+
अद्भुत उजाला
सीमाओं में जीती रहती है  
+
निःशब्द मौन होता है  
जैसे नदी।
+
ईश्वरीय सृष्टि-शक्ति
 +
उस मौन में बाँचती है  
 +
वेदों के सूक्त।
  
औरत फूलती-फलती है
+
अँधेरा
पर सदा भूखी रहती है  
+
बोलता है अँधेपन की भाषा
जैसे वृक्ष।
+
अपराध के जोखिम
 +
डरावनी गूँज
 +
सन्नाटे का शोर
 +
भय के शब्द।
  
औरत झरती और बरसती रहती है
+
अँधेरा
और सदैव प्यासी रहती है  
+
बोलता है जीवन के मृत होने की
जैसे बादल।
+
शून्य भाषा
 
+
कालिख के रहस्य
औरत बनाती है घर
+
अँधेरे की आँखों में
पर हमेशा रहती है बेघर
+
मृत्यु के शब्द होते हैं
जैसे पक्षी।
+
अँधेरे के ओठों में
 
+
चीख
औरत बुलंद आवाज़ है
+
अँधेरे की साँसों में
पर चुप रहती है
+
मृत्यु की डरावनी परछाईं।
जैसे शब्द।
+
 
+
औरत जन्मती है आदमी
+
पर गुलाम रहती है सदा
+
जैसे बीज।
+
 
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10:29, 26 मई 2014 के समय का अवतरण

उजाला
बोलता है चुपचाप
शब्द
जिसको दिखना-दिखाना है।

उजाला
खोलता है चुपचाप
रहस्य
जो उसके विरुद्ध हैं।

अद्भुत उजाला
निःशब्द मौन होता है
ईश्वरीय सृष्टि-शक्ति
उस मौन में बाँचती है
वेदों के सूक्त।

अँधेरा
बोलता है अँधेपन की भाषा
अपराध के जोखिम
डरावनी गूँज
सन्नाटे का शोर
भय के शब्द।

अँधेरा
बोलता है जीवन के मृत होने की
शून्य भाषा
कालिख के रहस्य
अँधेरे की आँखों में
मृत्यु के शब्द होते हैं
अँधेरे के ओठों में
चीख
अँधेरे की साँसों में
मृत्यु की डरावनी परछाईं।