भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वसंत की जड़ें / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:21, 27 मई 2014 के समय का अवतरण
सूर्य की चमक में
तुम्हारा ताप है
हवाओं में साँस
पाँखुरी में स्पर्श
सुगंध में पहचान
जब जीना होता है तुम्हें
खड़ी हो जाती हूँ प्रकृति-बीच
और आँखें
महसूस करती हैं तुम्हें
अपने भीतर
अपनी परछाईं में
देखती हूँ तुम्हें ही
मेरी देह
बन चुकी है तुम
प्यार की परछाईं बनकर
धरती पर बिछी हुई हूँ
तुम्हारी देह
छूती है जिसे छाया बनकर
कि परछाईं वाली धरती में
फूट पड़ती हैं वसंत की जड़ें।