"एकाकी राग / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर
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15:21, 27 मई 2014 के समय का अवतरण
एक गहरी तड़प की
छटपटाहट में
निचुड़ती रहती है देह
रह रह कर टभकती है पीड़ा
बूँद बूँद चूता है दर्द
मन-घट में
स्मृतियों का अमृत
प्रतीक्षा की सूनी नदी
और मन का तट
झाँकती हूँ जब भी
दिखती है अपने मन की जल-सतह पर
चाहत की व्याकुलता में
थका हुआ तुम्हारा चेहरा
कोसती हूँ
साँसों की गोद में पड़े हुए समय को
समाई हुई है जिसमें
दो नक्षत्रों की दूरी
अपाट
प्रवास में
तृषा को जीना जाना
आँखों ने सीखा
आँसू पीना चुपचाप
रेगिस्तान में
दबे हुए बुत की तरह
तपती रहती हूँ हर पल
अकेलेपन की आग में
मन जीता है
और जानता है
एक पथराई हुई खामोशी
जिसमें जीती रही हूँ अब तक
तुम्हारी प्रतीक्षा में
बैठी रही हूँ समय के बारूदी ढेर पर
और सुलगती रही
भीतर ही भीतर
सबसे खुद को बचाकर
काँटे की तरह
धँसे हुए समय में
तुम्हारी स्मृतियों की धड़कनें
मेरे भीतर करती हैं स्तुति पाठ
आत्मीय मंत्रोच्चार की तरह।