भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वही त्रिलोचन है / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }} वही त्रिलोचन है, वह-जिस के तन पर गंदे कपड़े ...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
  
वही त्रिलोचन है, वह-जिस के तन पर गंदे
+
 
कपड़े हैं। कपड़े भी कैसे- फटे लटे हैं
+
वही त्रिलोचन है, वह-जिस के तन पर गंदे<br>
यह भी फैशन है, फैशन से कटे कटे हैं.
+
कपड़े हैं। कपड़े भी कैसे-फटे लटे हैं<br>
कौन कह सकेगा इसका जीवन चंदे
+
यह भी फ़ैशन है, फ़ैशन से कटे कटे हैं।<br>
पर अवलंबित है. चलना तो देखो इसका-
+
कौन कह सकेगा इसका यह जीवन चंदे<br>
उठा हुआ सिर, चौड़ी छाती, लम्बी बाहें,
+
पर अवलम्बित् है। चलना तो देखो इसका-<br>
सधे कदमस तेजी, वे टेढ़ी मेढ़ी राहें
+
उठा हुआ सिर, चौड़ी छाती, लम्बी बाहें,<br>
मानो डर से सिकुड़ रही हैं, किस का किस का
+
सधे कदम, तेजी, वे टेढ़ी मेढ़ी राहें<br>
ध्यान इस समय खींच रहा है. कौन बताए,
+
मानो डर से सिकुड़ रही हैं, किस का किस का<br>
क्या हलचल है इस के रुंघे रुंधाए जी में
+
ध्यान इस समय खींच रहा है। कौन बताए,<br>
कभी नहीं देखा है इसको चलते धीमे.
+
क्या हलचल है इस के रुंधे रुंधाए जी में<br>
धुन का पक्का है, जो चेते वही चिताए.
+
कभी नहीं देखा है इसको चलते धीमे।<br>
जीवन इसका जो कुछ है पथ पर बिखरा है,
+
धुन का पक्का है, जो चेते वही चिताए।<br>
तप तप कर ही भट्ठी में सोना निखरा है.
+
जीवन इसका जो कुछ है पथ पर बिखरा है,<br>
 +
तप तप कर ही भट्ठी में सोना निखरा है।

22:20, 24 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण


वही त्रिलोचन है, वह-जिस के तन पर गंदे
कपड़े हैं। कपड़े भी कैसे-फटे लटे हैं
यह भी फ़ैशन है, फ़ैशन से कटे कटे हैं।
कौन कह सकेगा इसका यह जीवन चंदे
पर अवलम्बित् है। चलना तो देखो इसका-
उठा हुआ सिर, चौड़ी छाती, लम्बी बाहें,
सधे कदम, तेजी, वे टेढ़ी मेढ़ी राहें
मानो डर से सिकुड़ रही हैं, किस का किस का
ध्यान इस समय खींच रहा है। कौन बताए,
क्या हलचल है इस के रुंधे रुंधाए जी में
कभी नहीं देखा है इसको चलते धीमे।
धुन का पक्का है, जो चेते वही चिताए।
जीवन इसका जो कुछ है पथ पर बिखरा है,
तप तप कर ही भट्ठी में सोना निखरा है।