"हर आन मुहब्बत में मिरी जाँ पे बनी है / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’" के अवतरणों में अंतर
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरवर आलम राज़ 'सरवर' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:43, 1 जून 2014 के समय का अवतरण
हर आन मुहब्बत में मिरी जाँ पे बनी है
दुनिया है कि यह खेल खड़ी देख रही है!
ग़म ही मुझे कोई है, न ही कोई ख़ुशी है
ये कैसे दो-राहे पे हयात अपनी खड़ी है?
मैं और तग़ाफ़ुल की शिकायत करूँ?तौबा!
कब आप ने पहले मिरी रूदाद सुनी है?
अफ़्सोस! सुख़न-साज़ी-ए-अर्बाब-ए-सियासत!
अब शहर-ए-मुहब्बत में जो है रीत नई है!
हर ज़ख़्म पे उम्मीद नई दिल में हो पैदा
आइन-ए-वफ़ा है तो यही शीशागरी है
तस्कीन-ए-अलम,ज़िक्र-ए-वफ़ा,वादा-ए-फ़र्दा!
कुछ भी नहीं अल्फ़ाज़ की इक जादूगरी है
दुनिया के ग़मों ने मुझे रख़्ख़ा न कहीं का
अब आह-ए-सहर है,न गम-ए-नीमशबी है
गो सच है कि उम्मीद पे कायम है ये दुनिया
जो कल था तिरा आज भी अन्दाज़ वही है
हँसती है जो दुनिया मिरी आशुफ़्ता-सरी पर
सौ होश से भारी मिरी ये बे-ख़बरी है
बेहतर है कि ख़ामोश रहें हज़रत-ए-"सरवर"!
अश’आर नये हैं न कोई बात नई है