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(राग आसावरी-ताल धुमाली)
मेरे एक राम-नाम आधार।
ढूँढथा यो पर मिल्यो न दूजो, भीर परेको यार॥
देखे-सुने अनेक महीपति, पंडित, साहूकार।
जद्यपि नीति-धरम-धन-संयुत, नहिं अस परम उदार॥
मात-पिता, भ्राता, नारी, सुत, सेवक, बंधु अपार।
बिपद-काल महँ कोउ न संगी, स्वारथमय संसार॥
करि करुना दयालु गुरु दीन्हों, राम-नाम सुख-सार।
दुस्तर भव-सागर महँ अटक्यो बेरो उतर्यो पार॥