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(राग जंगला-ताल कहरवा)
नित्य नयी आसक्ति, कामना, ममता नित नव पाप।
नित्य अशान्ति, नित्य ही चिन्ता, नित्य शोक-संताप॥
बीत रहा अनर्थमय जीवन यों सारा बेकाम।
चेत करो, छोड़ो प्रमाद सब, भजो निरन्तर राम॥