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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
नई सदीशहर में रात</div>
<div style="text-align: center;">
रचनाकार: [[ नीलेश रघुवंशीकेदारनाथ सिंह]]
</div>
<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
आतंक और बर्बरता से शुरू हुई नई सदीबिजली चमकी, पानी गिरने का डर हैधार्मिक उन्माद और बर्बर हमले बने पहचान वे क्यों भागे जाते हैं जिनके घर हैइक्कीसवीं सदी केवे क्यों चुप हैं जिनको आती है भाषाबदा था इक्कीसवीं सदी की क़िस्मत मेंवह क्या है जो दिखता है धुँआ-धुआँ-सामरते जाना हर दिन बेगुनाह लोगों काहज़ार बरस पीछे ढकेलने का षड्यन्त्र ! आख़िर किया किसने ?वह क्या है हरा-हरा-सा जिसके आगेकिसने ? किसने ढकेला जीवन हैं उलझ गए जीने के सारे धागेबुनियादी हक़ों को हाशिए पर ?यह शहर कि जिसमें रहती है इच्छाएँक्या सचमुचकुत्ते भुनगे आदमी गिलहरी गाएँइक्कीसवीं सदी उन्माद और युद्धोन्माद की सदी होगी यायह शहर कि जिसकी ज़िद है सीधी-सादीहोगी उजड़ते संसार ज्यादा-से-ज्यादा सुख सुविधा आज़ादीतुम कभी देखना इसे सुलगते क्षण में एक हरी पत्ती की यह अलग-अलग दिखता है हर दर्पण में साथियो, रात आई, अब मैं जाता हूँइस आने-जाने का वेतन पाता हूँजब आँख लगे तो सुनना धीरे-धीरेकिस तरह ? रात-भर बजती हैं ज़ंजीरें
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</div></div>
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