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<p style="margin-bottom:35px">कविता कोश भारतीय भाषाओं के काव्य का सर्वप्रथम और सबसे विशाल ऑनलाइन विश्वकोश है। जुलाई 2006 में प्रारम्भ हुई इस ऐतिहासिक परियोजना ने अन्य कई परियोजनाओं के लिए भी प्रेरणा का काम किया है। कविता कोश के बाद साहित्यिक कोश बनाने के कई प्रयास आरम्भ हुए हैं। सरकारी व निजी संस्थाओं द्वारा इन नई परियोजनाओं को आर्थिक व अन्य सभी तरह के संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं।</p>
<p style="margin-bottom:35px">कविता कोश की खूबी है कि यह आरम्भ से ही स्वयंसेवा पर आधारित परियोजना रही है। कविता कोश के आज यहाँ तक पहुँचने में बहुत-से व्यक्तियों ने श्रमदान दिया और दिन-रात निस्वार्थ कार्य किया। इन लोगों को अपनी अथक मेहनत का कोई वेतन नहीं मिला लेकिन इसके बावजूद हमारा यह प्रयास नहीं रुका।</p>
<div style="background-color:#F5FAFF;width:250px; empty-cells:show; border: 1px solid #ccd2d9; float:right; text-align:left; padding:10px; margin: 10px 0 10px 10px;">
<div style="background:#CEDFF2; border: 1px solid #A3A0BF; text-align:center; font-size: 25px; padding:10px">'''कुछ आंकडे'''</div>
* '''स्थापना:''' 6 5 जुलाई 2006
* '''कुल पन्नें:''' 75,000+
* '''कुल भाषाएँ:''' 50+
* '''अनुवाद:''' [[विदेशी भाषाओं से अनूदित | विदेशी]] और [[भारतीय भाषाओं से अनूदित | भारतीय]] भाषाओं से हिन्दी में* '''भाषा आधारित वृहद विभाग:''' 7 9 (हिन्दी, उर्दू, राजस्थानी, भोजपुरी, मैथिली, अवधी, संस्कृत, हरियाणवी, छत्तीसगढ़ी... नए विभाग जुड़ना जारी है)* '''ग़ैर-देवनागरी विभाग:''' 2 (गुजराती, मराठी... नए विभाग जुड़ना जारी है)* '''प्रादेशिक कविता कोश:''' 11
* '''लोकगीत:''' 1,000+
* '''रचनाकार:''' 2,500+
* '''शायर:''' 650+
* '''महिला रचनाकार:''' 200+
* '''प्रादेशिक कविता कोश:''' 11
* '''आगंतुक/माह:''' 300,000+
* '''रचना-पठन/माह:''' 20,000,00+
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<p style="margin-bottom:35px">मैंने पिछले वर्षों के दौरान कई ऐसी घटनाएँ देखी हैं जो इस कोश के प्रति लोगों के अपार स्नेह और कटिबद्धता को दर्शाती हैं। स्कूल जाने वाले एक विद्यार्थी ने एक बार अपनी पॉकेट-मनी देने का प्रस्ताव रखा ताकि कविता कोश को कुछ आर्थिक सहायता मिल सके। हमारे योगदानकर्ताओं के पास काम करने के लिए कम्प्यूटर नहीं था तो उन्होनें दोस्तों / रिश्तेदारों से रोज़ाना कुछ देर के लिए कम्प्यूटर मांग कर कोश के लिए काम किया है। बहुत से इलाके ऐसे हैं जहाँ रहने वाले योगदानकर्ताओं के घरों में केवल कुछ घंटे के लिए बिजली आती है। ये योगदानकर्ता बस इसी इंतज़ार में रहते हैं कि कब बिजली आए और कब वे अपना यथासंभव योगदान कविता कोश के विकास में दे सकें। हममें से कई लोग सुबह-सवेरे उठकर कोश पर काम शुरु करते हैं और आधी रात के बाद तक यह सिलसिला चलता रहता है। अपने व्यव्साय से बेहद कम आय प्राप्त करने वाले योगदानकर्ता भी इस बात से तनिक गुरेज़ नहीं करते कि वे अपने पारिवारिक खर्चों से बचाकर सौ-दो-सौ रुपए कोश के काम के लिए कुछ धन खर्च कर दें। समय के जो सुंदर पल अपने परिवार व मित्रों के साथ बिताए जा सकते थे –कविता कोश के योगदानकर्ता वे पल को इस परियोजना को भेंट दे देते हैं। कई योगदानकर्ताओं ने अपने अच्छे-खासे करियर तक का इस कोश के लिए त्याग कर दिया। ये कोई साधारण बातें नहीं हैं।</p>
मैंने पिछले वर्षों के दौरान कई ऐसी घटनाएँ देखी हैं जो इस कोश के प्रति लोगों के अपार स्नेह <p style="margin-bottom:35px">और कटिबद्धता को दर्शाती हैं। स्कूल जाने वाले एक विद्यार्थी ने एक बार अपनी पॉकेट-मनी देने का प्रस्ताव रखा ताकि कविता कोश को कुछ आर्थिक सहायता मिल सके। हमारे योगदानकर्ताओं के पास काम करने लाखों पाठकों के लिए कम्प्यूटर नहीं था तो उन्होनें दोस्तों / रिश्तेदारों से रोज़ाना कुछ देर के लिए कम्प्यूटर मांग कर कोश के लिए काम किया है। बहुत से इलाके ऐसे हैं जहाँ रहने वाले योगदानकर्ताओं के घरों में केवल कुछ घंटे के लिए बिजली आती है। ये योगदानकर्ता बस इसी इंतज़ार में रहते हैं कि कब बिजली आए और कब वे अपना यथासंभव योगदान कविता कोश जीवन के विकास में दे सकें। हममें से कई लोग सुबह-सवेरे उठकर कोश पर काम शुरु करते हैं और आधी रात के बाद तक यह सिलसिला चलता रहता है। अपने व्यव्साय से बेहद कम आय प्राप्त करने वाले योगदानकर्ता भी इस बात से तनिक गुरेज़ नहीं करते कि वे अपने पारिवारिक खर्चों से बचाकर सौ-दो-सौ रुपए कोश के काम के लिए कुछ धन खर्च कर दें। समय के जो सुंदर पल अपने परिवार व मित्रों के साथ बिताए जा सकते थे –कविता कोश के योगदानकर्ता वे पल को इस परियोजना को भेंट दे देते हैं। कई योगदानकर्ताओं ने अपने अच्छे-खासे करियर तक का इस कोश के लिए त्याग कर दिया। ये कोई साधारण बातें नहीं हैं।एक अंग की तरह है ही।</p>
और लाखों पाठकों <p style="margin-bottom:35px">हमारे पास काम करने के लिए तो न कार्यालय है, न प्रचूर मात्रा में धन है, और न ही हमें वेतन मिलता है... लेकिन हमारे पास लगन है... मेहनत करने का जुनून है... स्वयंसेवा करने की इच्छा है... हमारे पास भारत की भाषाओ और साहित्य को पूरे विश्व में पहचान दिलाने का स्वप्न है... बस यही सब हमारे संसाधन हैं। अन्य परियोजनाओं की नींव धन पर रखी जाती है -लेकिन कविता कोश जीवन के एक अंग की तरह नींव में केवल निस्वार्थ मेहनत भरी है ही।... और कूट-कूट कर भरी है।</p>
हमारे पास काम करने <p style="margin-bottom:35px">सरकारी और निजी क्षेत्र ने इस परियोजना के लिए न कार्यालय प्रति बेरुखी दिखाई है, न प्रचूर मात्रा में धन है, और न ही हमें वेतन मिलता है... लेकिन हमारे पास लगन है... मेहनत करने का जुनून है... स्वयंसेवा करने हमारी कोई सहायता नहीं की इच्छा है... हमारे पास भारत की भाषाओ और साहित्य को पूरे विश्व में पहचान दिलाने का स्वप्न है... बस यही सब हमारे संसाधन हैं। अन्य परियोजनाओं की नींव धन पर रखी जाती है -गई; लेकिन हमने हार नहीं मानी है। कविता कोश के हम सब योगदानकर्ता चाहे गिनती में कम हों लेकिन हम इस परियोजना को जितना संभव होगा उतना आगे ले जाने की नींव में केवल निस्वार्थ मेहनत भरी है... और कूट-कूट कर भरी है।पूरी कोशिश अवश्य करेंगे।</p>
सरकारी और निजी क्षेत्र ने इस <p style="margin-bottom:35px">यह परियोजना आप सब की अपनी परियोजना के प्रति बेरुखी दिखाई है और हमारी कोई सहायता नहीं की गई; लेकिन हमने हार नहीं मानी इससे जुड़ा हर व्यक्ति अपनी सीमाओं से भी आगे निकलकर इसके विकास हेतु अपना योगदान देता है। कविता कोश के हम सब योगदानकर्ता चाहे गिनती में कम हों लेकिन हम इस परियोजना को जितना संभव होगा उतना आगे ले जाने की पूरी कोशिश अवश्य करेंगे।</p>
यह परियोजना आप सब की अपनी परियोजना <p style="margin-bottom:35px">सभी व्यक्तियों व संस्थाओं से गुजारिश है कि इस परियोजना को अर्थ, ज्ञान या श्रम का सहयोग दें। लगातार बढ़ती और इससे जुड़ा हर व्यक्ति अपनी सीमाओं से भी आगे निकलकर इसके विकास हेतु अपना योगदान देता फैलती इस परियोजना को अब सहारे की आवश्यकता है।</p>
सभी व्यक्तियों व संस्थाओं से गुजारिश है कि इस परियोजना को अर्थ, ज्ञान या श्रम का सहयोग दें। लगातार बढ़ती और फैलती इस परियोजना को अब सहारे की आवश्यकता है।<p style="margin-bottom:35px">हमें विश्वास है कि भारत, संस्कृति, भाषा और साहित्य से प्रेम करने वाला समाज हमारे वर्षों के त्याग, लगन और मेहनत को असफ़ल नहीं होने देगा।</p>
<p style="margin-bottom:35px">कविता कोश जैसी सुंदर परियोजना यदि अथक श्रम द्वारा पल्लवित होने के बावज़ूद संसाधनों के अभाव में दम तोड़ देगी तो यह एक सुंदर स्वप्न के टूटने जैसा होगा... स्वप्न जो साकार हो सकता था... लेकिन संसाधन-सम्पन्न समाज की उदासीनता ने उसे साकार नहीं होने दिया।</p>
<p style="margin-bottom:35px">कविता कोश के योगदानकर्ता अपना काम वर्षों से कर रहे हैं। अब समाज की बारी है कि वह भी अपन दायित्व निभाए।</p>
'''[[कविता कोश टीम | ललित कुमार]]'''<br>संस्थापक, निदेशक<br>
[[कविता कोश टीम]]<br>