भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अन्दर से लाड्डो बाहर निकलो / खड़ी बोली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: अज्ञात विवाह –गीत / अज्ञात ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ अन्दर से लाड्ड...)
 
पंक्ति 33: पंक्ति 33:
  
 
तेरे भाई को अपणी बाहण दिलादूँ,<br>
 
तेरे भाई को अपणी बाहण दिलादूँ,<br>
'''Bold text'''
+
 
 
होय लो न रुकमण सामणी<br>
 
होय लो न रुकमण सामणी<br>
  

19:00, 21 दिसम्बर 2007 का अवतरण

रचनाकार: अज्ञात

विवाह –गीत / अज्ञात

~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~

अन्दर से लाड्डो बाहर निकलो

कँवर चौंरी चढ़ गयौ

होय लो न रुकमण सामणी ।

-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया

लखिया सा बाबा मेरी सामणी ।

तेरे बाबा को अपणी दादी दिलादूँ

होय लो न रुकमण सामणी ।

-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया

लखिया सा ताऊ मेरी सामणी

तेरे ताऊ को अपणी ताई दिलादूँ

होय लो न रुकमण सामणी

-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया

लखिया सा भाई मेरी सामणी

तेरे भाई को अपणी बाहण दिलादूँ,

होय लो न रुकमण सामणी

-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया

लखिया सा बाबुल मेरी सामणी

तेरे बाबुल को अपणी अम्मा दिलादूँ

होय लो न रुकमण सामणी ।