"हमारी माँ अगर होती / प्रभुदयाल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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हमारी माँ अगर होती, हमारे साथ में पापा| | हमारी माँ अगर होती, हमारे साथ में पापा| | ||
− | फटकने दुख नहीं देती ,हमारे पास में पापा|| | + | फटकने दुख नहीं देती, हमारे पास में पापा|| |
− | सुबह उठकर हमें वह दूध ,हँस हँस कर पिलाती थी| | + | सुबह उठकर हमें वह दूध, हँस हँस कर पिलाती थी| |
− | डबल रोटी या बिस्कुट ,साथ में ,हमको खिलाती थी| | + | डबल रोटी या बिस्कुट, साथ में, हमको खिलाती थी| |
− | अगर होती सुबह से ही ,कभी की उठ चुकी होती| | + | अगर होती सुबह से ही, कभी की उठ चुकी होती| |
हमें रहने नहीं देती, कभी उपवास में पापा| | हमें रहने नहीं देती, कभी उपवास में पापा| | ||
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हमारे स्वप्न जो होते, उन्हें साकार करती थी| | हमारे स्वप्न जो होते, उन्हें साकार करती थी| | ||
− | किसी भी और माता से,अधिक वह प्यार करती थी| | + | किसी भी और माता से, अधिक वह प्यार करती थी| |
− | नहीं अब साथ में तो यह,जहां बेकार लगता है| | + | नहीं अब साथ में तो यह, जहां बेकार लगता है| |
− | नहीं अब कुछ बचा बाकी,हमारे हाथ में पापा| | + | नहीं अब कुछ बचा बाकी, हमारे हाथ में पापा| |
− | सदा सोने से पहले लोरियाँ ,हमको सुनाती थी| | + | सदा सोने से पहले लोरियाँ, हमको सुनाती थी| |
इशारे से कभी चंदा, कभी तारे दिखाती थी| | इशारे से कभी चंदा, कभी तारे दिखाती थी| | ||
− | हमें जब है जरूरत है,प्यार के बादल बरसने की| | + | हमें जब है जरूरत है, प्यार के बादल बरसने की| |
पड़ा है किस तरह सूखा भरी बरसात में पापा| | पड़ा है किस तरह सूखा भरी बरसात में पापा| | ||
पंक्ति 41: | पंक्ति 41: | ||
− | हमें यूं छोड़कर जाने की,उसको क्या जरूरत थी| | + | हमें यूं छोड़कर जाने की, उसको क्या जरूरत थी| |
उसी के साथ जीवन भर, हमें रहने की हसरत थी| | उसी के साथ जीवन भर, हमें रहने की हसरत थी| | ||
− | हमें लगता किसी ने,यूं नज़र हमको लगाई है| | + | हमें लगता किसी ने, यूं नज़र हमको लगाई है| |
− | छुपा बैठा हमारे घर,हमारी घात में पापा| | + | छुपा बैठा हमारे घर, हमारी घात में पापा| |
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10:15, 30 जून 2014 के समय का अवतरण
हमारी माँ अगर होती, हमारे साथ में पापा|
फटकने दुख नहीं देती, हमारे पास में पापा||
सुबह उठकर हमें वह दूध, हँस हँस कर पिलाती थी|
डबल रोटी या बिस्कुट, साथ में, हमको खिलाती थी|
अगर होती सुबह से ही, कभी की उठ चुकी होती|
हमें रहने नहीं देती, कभी उपवास में पापा|
हमारे स्वप्न जो होते, उन्हें साकार करती थी|
किसी भी और माता से, अधिक वह प्यार करती थी|
नहीं अब साथ में तो यह, जहां बेकार लगता है|
नहीं अब कुछ बचा बाकी, हमारे हाथ में पापा|
सदा सोने से पहले लोरियाँ, हमको सुनाती थी|
इशारे से कभी चंदा, कभी तारे दिखाती थी|
हमें जब है जरूरत है, प्यार के बादल बरसने की|
पड़ा है किस तरह सूखा भरी बरसात में पापा|
हमें यूं छोड़कर जाने की, उसको क्या जरूरत थी|
उसी के साथ जीवन भर, हमें रहने की हसरत थी|
हमें लगता किसी ने, यूं नज़र हमको लगाई है|
छुपा बैठा हमारे घर, हमारी घात में पापा|