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"क्या होता है रमतूला / प्रभुदयाल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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मम्मी मुझको नहीं खेलने, देती है अब घर घूला| | मम्मी मुझको नहीं खेलने, देती है अब घर घूला| | ||
− | ना ही मुझे बनाने देती ,गोबर मिट्टी का चूल्हा| | + | ना ही मुझे बनाने देती, गोबर मिट्टी का चूल्हा| |
− | गपई समुद्दर क्या होता है,नहीं जानता अब कोई| | + | गपई समुद्दर क्या होता है, नहीं जानता अब कोई| |
गिल्ली डंडे का टुल्ला तो, बचपन बिल्कुल ही भूला| | गिल्ली डंडे का टुल्ला तो, बचपन बिल्कुल ही भूला| | ||
− | अब तो सावन खेल रहा है ,रात और दिन टी वी से| | + | अब तो सावन खेल रहा है, रात और दिन टी वी से| |
आम नीम की डालों पर अब, कहीं नहीं दिखता झूला| | आम नीम की डालों पर अब, कहीं नहीं दिखता झूला| | ||
− | अब्ब्क दब्बक दांयें दीन का ,बिसरा खेल जमाने से| | + | अब्ब्क दब्बक दांयें दीन का, बिसरा खेल जमाने से| |
− | अटकन चटकन दही चटाकन ,लगता है भूला भूला| | + | अटकन चटकन दही चटाकन, लगता है भूला भूला| |
न ही झड़ी लगे वर्षा की, न ही चलती पुरवाई| | न ही झड़ी लगे वर्षा की, न ही चलती पुरवाई| | ||
− | मौसम हुआ आज जादूगर | + | मौसम हुआ आज जादूगर, वक्त हुआ लगड़ा लूला| |
ऐसी चली हवा पश्चिम की, हम खुद को ही भूल गये| | ऐसी चली हवा पश्चिम की, हम खुद को ही भूल गये| | ||
गुड़िया अब ये नहीं जानती, क्या होता है रमतूला|</poem> | गुड़िया अब ये नहीं जानती, क्या होता है रमतूला|</poem> |
10:43, 30 जून 2014 के समय का अवतरण
मम्मी मुझको नहीं खेलने, देती है अब घर घूला|
ना ही मुझे बनाने देती, गोबर मिट्टी का चूल्हा|
गपई समुद्दर क्या होता है, नहीं जानता अब कोई|
गिल्ली डंडे का टुल्ला तो, बचपन बिल्कुल ही भूला|
अब तो सावन खेल रहा है, रात और दिन टी वी से|
आम नीम की डालों पर अब, कहीं नहीं दिखता झूला|
अब्ब्क दब्बक दांयें दीन का, बिसरा खेल जमाने से|
अटकन चटकन दही चटाकन, लगता है भूला भूला|
न ही झड़ी लगे वर्षा की, न ही चलती पुरवाई|
मौसम हुआ आज जादूगर, वक्त हुआ लगड़ा लूला|
ऐसी चली हवा पश्चिम की, हम खुद को ही भूल गये|
गुड़िया अब ये नहीं जानती, क्या होता है रमतूला|