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मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बान्हल केश खुजिए गेल घाम सऽ भीजिए गेल रे
ललना रे तइयो ने होरिला जनम लेल आब जीव जायत रे
सासु मोर सुतली भानस घर ननदी कोबरा घर रे
ललना रे हुनि प्रभु सुतल मंदिर घर ककरा जगाएब रे
उठू उठू ननदो गोसाउनि मोर ठकुराइनि रे
ललना रे जाहक रंगमहल मे कि भइया जगाबहु रे
चुटकी शब्द सऽ उठाओल उठा बुझाओल रे
भइया हे तोरो धनि दरदे बेआकुल दगरिन चाहिअ रे
काँख जाँति लेलनि पोथिया हाथ जांति सटकुंइया रे
ललना रे आबि बैसल मुन्हारि घर कि कहू धनी कुशल रे
देह मोर कांपय गहन जकाँ नामी केश भुइयां लोटू रे
पिया हे धरती लागल असमान नयन नहि सूझय रे