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"आसन पर बैसू गिरधारी / मैथिली लोकगीत" के अवतरणों में अंतर
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मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
आसन पर बैसू गिरधारी सुनू विनती हमारी जी
थारी मे भात सांठल अछि बाटी मे दालि राखल
ताहि ऊपर धृत ढ़ारी, सुनू विनती हमारी जी
ओल - परोर बड़ी - बड़ भटबड़
तरह-तरह तरकारी, सुनू विनती हमारी जी
तरल रहू मांगुर झोराओल
छागर मारि कयलनि, ससुर तइयारी जी
कहथि विद्यापति विनती रुचिसँ जेम लालन
भेटली राधा सन प्यारी, विनती हमारी