"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;"> | <div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;"> | ||
− | + | मौसियाँ</div> | |
<div style="text-align: center;"> | <div style="text-align: center;"> | ||
− | रचनाकार: [[ | + | रचनाकार: [[अनामिका]] |
</div> | </div> | ||
<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div> | <div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div> | ||
− | + | वे बारिश में धूप की तरह आती हैं -– | |
− | वे | + | थोड़े समय के लिए और अचानक |
− | + | हाथ के बुने स्वेटर, इन्द्रधनुष, तिल के लड्डू | |
− | + | और सधोर की साड़ी लेकर | |
+ | वे आती हैं झूला झुलाने | ||
+ | पहली मितली की ख़बर पाकर | ||
+ | और गर्भ सहलाकर | ||
+ | लेती हैं अन्तरिम रपट | ||
+ | गृहचक्र, बिस्तर और खुदरा उदासियों की । | ||
− | + | झाड़ती हैं जाले, संभालती हैं बक्से | |
− | हैं | + | मेहनत से सुलझाती हैं भीतर तक उलझे बाल |
− | + | कर देती हैं चोटी-पाटी | |
− | + | और डाँटती भी जाती हैं कि री पगली तू | |
+ | किस धुन में रहती है | ||
+ | कि बालों की गाँठें भी तुझसे | ||
+ | ठीक से निकलती नहीं । | ||
− | + | बालों के बहाने | |
− | + | वे गाँठें सुलझाती हैं जीवन की | |
− | + | करती हैं परिहास, सुनाती हैं क़िस्से | |
− | + | और फिर हँसती-हँसाती | |
+ | दबी-सधी आवाज़ में बताती जाती हैं -– | ||
+ | चटनी-अचार-मूंग-बड़ियाँ और बेस्वाद सम्बन्ध | ||
+ | चटपटा बनाने के गुप्त मसाले और नुस्खे -– | ||
+ | सारी उन तकलीफ़ों के जिन पर | ||
+ | ध्यान भी नहीं जाता औरों का । | ||
− | + | आँखों के नीचे धीरे-धीरे | |
− | + | जिसके पसर जाते हैं साए | |
− | + | और गर्भ से रिसते हैं महीनों चुपचाप -– | |
− | + | ख़ून के आँसू-से | |
+ | चालीस के आसपास के अकेलेपन के उन | ||
+ | काले-कत्थई चकत्तों का | ||
+ | मौसियों के वैद्यक में | ||
+ | एक ही इलाज है -– | ||
+ | हँसी और कालीपूजा | ||
+ | और पूरे मोहल्ले की अम्मागिरी । | ||
+ | |||
+ | बीसवीं शती की कूड़ागाड़ी | ||
+ | लेती गई खेत से कोड़कर अपने | ||
+ | जीवन की कुछ ज़रूरी चीज़ें -– | ||
+ | जैसे मौसीपन, बुआपन, चाचीपन्थी, | ||
+ | अम्मागिरी मग्न सारे भुवन की । | ||
</div> | </div> | ||
</div></div> | </div></div> |
14:06, 14 जुलाई 2014 का अवतरण
रचनाकार: अनामिका
वे बारिश में धूप की तरह आती हैं -– थोड़े समय के लिए और अचानक हाथ के बुने स्वेटर, इन्द्रधनुष, तिल के लड्डू और सधोर की साड़ी लेकर वे आती हैं झूला झुलाने पहली मितली की ख़बर पाकर और गर्भ सहलाकर लेती हैं अन्तरिम रपट गृहचक्र, बिस्तर और खुदरा उदासियों की ।
झाड़ती हैं जाले, संभालती हैं बक्से मेहनत से सुलझाती हैं भीतर तक उलझे बाल कर देती हैं चोटी-पाटी और डाँटती भी जाती हैं कि री पगली तू किस धुन में रहती है कि बालों की गाँठें भी तुझसे ठीक से निकलती नहीं ।
बालों के बहाने वे गाँठें सुलझाती हैं जीवन की करती हैं परिहास, सुनाती हैं क़िस्से और फिर हँसती-हँसाती दबी-सधी आवाज़ में बताती जाती हैं -– चटनी-अचार-मूंग-बड़ियाँ और बेस्वाद सम्बन्ध चटपटा बनाने के गुप्त मसाले और नुस्खे -– सारी उन तकलीफ़ों के जिन पर ध्यान भी नहीं जाता औरों का ।
आँखों के नीचे धीरे-धीरे जिसके पसर जाते हैं साए और गर्भ से रिसते हैं महीनों चुपचाप -– ख़ून के आँसू-से चालीस के आसपास के अकेलेपन के उन काले-कत्थई चकत्तों का मौसियों के वैद्यक में एक ही इलाज है -– हँसी और कालीपूजा और पूरे मोहल्ले की अम्मागिरी ।
बीसवीं शती की कूड़ागाड़ी लेती गई खेत से कोड़कर अपने जीवन की कुछ ज़रूरी चीज़ें -– जैसे मौसीपन, बुआपन, चाचीपन्थी, अम्मागिरी मग्न सारे भुवन की ।