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"ख़बर है दोनों को दोनों से दिल लगाऊँ मैं / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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ख़बर है दोनों कोदोनों से दिल लगाऊँ मैं,
 
किसे फ़रेब दूँ, किस से फ़रेब खाऊँ मैं ।
 
किसे फ़रेब दूँ, किस से फ़रेब खाऊँ मैं ।
  
नहीं है छत न सही आसमाँ तो अपना है,
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नहीं है छत न सही , आसमाँ तो अपना है,
 
कहो तो चाँद के पहलू में लेट जाऊँ मैं ।
 
कहो तो चाँद के पहलू में लेट जाऊँ मैं ।
  
यही वो शय है कहीं भी किसी भी काम में लो,
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यही वो शय हैकहीं भी किसी भी काम में लो,
 
उजाला कम हो तो बोलो कि दिल जलाऊँ मैं ।
 
उजाला कम हो तो बोलो कि दिल जलाऊँ मैं ।
  

13:57, 19 जुलाई 2014 का अवतरण

ख़बर है दोनों को, दोनों से दिल लगाऊँ मैं,
किसे फ़रेब दूँ, किस से फ़रेब खाऊँ मैं ।

नहीं है छत न सही , आसमाँ तो अपना है,
कहो तो चाँद के पहलू में लेट जाऊँ मैं ।

यही वो शय है, कहीं भी किसी भी काम में लो,
उजाला कम हो तो बोलो कि दिल जलाऊँ मैं ।

नहीं नहीं ये तिरी ज़िद नहीं है चलने की,
अभी-अभी तो वो सोया है फिर जगाऊँ मैं ।

बिछड़ के उससे दुआ कर रहा हूँ अय मौला,
कभी किसी की मुहब्बत न आज़माऊँ मैं ।

हर एक लम्हा नयापन हमारी फ़ितरत है,
जो तुम कहो तो पुरानी ग़ज़ल सुनाऊँ मैं ।

शब्दार्थ
<references/>