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"देह / अशोक कुमार शुक्ला" के अवतरणों में अंतर

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......पाकर ठंडाना चाहते है सब
 
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......फंस कर दम तोडते है सब
 
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18:54, 27 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

देह एक बूंद ओस की नमी
......पाकर ठंडाना चाहते है सब
देह एक कोयल की कूक
......सुनना चाहते हैं सब
देह एक आवारा बादल
......छांह पाना चाहते हैं सब
देह एक तपता सूरज
......झुलसते हैं सब
देह एक क्षितिज
.....लांधना चाहते हैं सब
देह एक मरीचिका
......भटकते हैं सब
देह ऐक विचार
.......पढना चाहते हैं सब
देह ऐक सम्मान
.......पाना चाहते हैं सब
देह एक वियावान
.......भटकना चाहते हैं सब
देह एक रात
......जीना चाहते हैं सब
और
देह ऐक दवानल
......फंस कर दम तोडते है सब