भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तट कै कौन भरोसा / हरिश्चंद्र पांडेय 'सरल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिश्चंद्र पांडेय 'सरल' |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

19:04, 27 जुलाई 2014 का अवतरण

तट कै कौन भरोसा जब हर लहर छुये ढहि जाय,

खोलइ कौन झरोखा जब सगरौ अँधियार लखाय।

पग दुइ पग तौ रेत लगै औ दूरि लगै जस पानी,

बुद्धि मृगा कै हरि कै लइगै तिस्ना भई सयानी,

दृग कै कौन भरोसा जब रेती कन नीर लखाय।

… … खोलइ कौन झरोखा जब सगरौ अँधियार लखाय।

आग लगै घर के दियना से धुवइँ धुआँ चहुँ ओर,

गिन गिन काटौ रैन अँधेरिया तबहुँ न जागै भोर,

पथ कै कौन भरोसा जब हर पग पै पग बिछलाय।

… … खोलइ कौन झरोखा जब सगरौ अँधियार लखाय।

अँधियरिया हम बियहि के लाये पाहुन लागि अँजोरिया,

तुहुँका बिपति बिपति यस होये हमैं पियारि बिपतिया,

सुख कै कवन भरोसा जब कुसमय देखे कतराय।

… … खोलइ कौन झरोखा जब सगरौ अँधियार लखाय।