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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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|चित्र=Uravasii.jpg
|रचनाकार=[[रामधारी सिंह "दिनकर"]]
|प्रकाशक=लोकभारती प्रकाशन
|वर्ष= --|भाषा=--|विषय= कविताएँ|शैली=--
|पृष्ठ=132
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* [[पात्र परिचय पुरुष--पुरुरवा - वेदकालीन, प्रतिष्ठानपुर के विक्रमी ऐल राजा, नायक महर्षि च्यवन - प्रसिद्द ;भ्रिगुवंशी, वेदकालीन महर्षि सूत्रधार - नाटक का शास्त्रीय आयोजक, अनिवार्य पात्र कंचुकी -सभासद -प्रतिहारी -प्रारब्ध आदि आयु - पुरुरवा-/ उर्वशी का पुत्र / रामधारी सिंह "दिनकर"]]महामात्य - पुरुरवा के मुख्य सचिव '''प्रथम अंक'''विश्व्मना - राज ज्योतिषी * [[प्रथम अंक / भाग 1 / रामधारी सिंह "दिनकर"]] * [[प्रथम अंक / भाग 2 / रामधारी सिंह "दिनकर"]] * [[प्रथम अंक / भाग 3 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]नारी--* [[प्रथम अंक / भाग 4 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]नटी - शास्त्रीय पात्री, सूत्रधार की पत्नी * [[प्रथम अंक / भाग 5 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]सहजन्या, रम्भा, मेनका, चित्रलेखा - अप्सराएं '''द्वितीय अंक'''औशीनरी - पुरुरवा पत्नी, प्रतिष्ठानपुर की महारानी * [[द्वितीय अंक / भाग 1 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]निपुणिका,मदनिका - औशिनरी की सखियाँ * [[द्वितीय अंक / भाग 2 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]उर्वशी - अप्सरा, नायिका * [[द्वितीय अंक / भाग 3 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]सुकन्या - च्यवन ऋषी की सहधर्मिणी* [[द्वितीय अंक / भाग 4 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]अपाला - उर्वशी की सेविका * [[द्वितीय अंक / भाग 5 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]_________________________________________________________________'''तृतीय अंक'''प्रथम * [[तृतीय अंक/ भाग 1 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]साधारणोंअयमुभ्यो: प्रणयः स्मरस्य,* [[तृतीय अंक / भाग 2 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]तप्तें ताप्त्मयसा घटनाय योग्यम._* [[तृतीय अंक / भाग 3 / रामधारी सिंह "दिनकर"]] विक्रमोर्वशीयम * [[तृतीय अंक / भाग 4 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]राजा पुरुरवा की राजधानी,प्रतिष्ठानपुर के समीप एकांत पुष्प कानन; शुक्ल पक्ष की रात; नटी और सूत्रधार चांदनी में प्रकृति की शोभा का पान कर रहे हैं. * [[तृतीय अंक / भाग 5 / रामधारी सिंह "दिनकर"]] सूत्रधार * [[तृतीय अंक / भाग 6 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]नीचे पृथ्वी पर वसंत की कुसुम-विभा छाई है,* [[तृतीय अंक / भाग 7 / रामधारी सिंह "दिनकर"]]ऊपर है चन्द्रमा द्वादशी का निर्मेघ गगन में.'''चतुर्थ अंक'''खुली नीलिमा पर विकीर्ण तारे यों दीप रहे हैं,* चतुर्थ अंक / भाग 1 / रामधारी सिंह "दिनकर" चमक रहे हों नील चीर पर बूटे ज्यों चांदी के;* चतुर्थ अंक / भाग 2 / रामधारी सिंह "दिनकर" या प्रशांत, निस्सीम जलधि में जैसे चरण-चरण पर * चतुर्थ अंक / भाग 3 / रामधारी सिंह "दिनकर" नील वारि को फोड़ ज्योति के द्वीप निकल आये हों* चतुर्थ अंक / भाग 4 / रामधारी सिंह "दिनकर" नटी * चतुर्थ अंक / भाग 5 / रामधारी सिंह "दिनकर" इन द्वीपों के बीच चन्द्रमा मंद मंद चलता है,'''पंचम अंक'''मंद-मंद चलती है नीचे वायु श्रांत मधुवन की;* पंचम अंक / भाग 1 / रामधारी सिंह "दिनकर" मद-विह्वल कामना प्रेम की, मानो, अलसायी-सी* पंचम अंक / भाग 2 / रामधारी सिंह "दिनकर" कुसुम-कुसुम पर विरद मंद मधु गति में घूम रही हो * पंचम अंक / भाग 3 / रामधारी सिंह "दिनकर" सूत्रधार * पंचम अंक / भाग 4 / रामधारी सिंह "दिनकर" सारी देह समेत निबिड़ आलिंगन में भरने को * पंचम अंक / भाग 5 / रामधारी सिंह "दिनकर" गगन खोल कर बांह विसुध वसुधा पर झुका हुआ है'''परिशिष्ट'''* उर्वशी / परिशिष्ट / रामधारी सिंह "दिनकर"