लेखक: [[शिवमंगल सिंह सुमन]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन]]|संग्रह=}}<poem> मैं नहीं आया तुम्हारे द्वारपथ ही मुड़ गया था।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~गति मिली, मैं चल पड़ा,पथ पर कहीं रुकना मना थाराह अनदेखी, अजाना देशसंगी अनसुना था।
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार<br>चाँद सूरज की तरह चलता,पथ ही मुड़ गया था ।<br><br>न जाना रात दिन हैकिस तरह हम-तुम गए मिल,आज भी कहना कठिन है।
गति मिली, मैं चल पड़ा,<br>तन न आया माँगने अभिसारपथ पर कहीं रुकना मना मन ही मन जुड़ गया था<br>राह अनदेखी, अजाना देश<br>मैं नहीं आया तुम्हारे द्वारसंगी अनसुना था ।<br><br>पथ ही मुड़ गया था।।
चाँद सूरज की तरह चलतादेख मेरे पंख चल,<br>गतिमयन जाना रात दिन है<br>लता भी लहलहाईकिस तरह हमपत्र आँचल में छिपाए मुख-तुम गए मिल,<br>आज कली भी कहना कठिन है मुस्कराई ।<br><br>
तन न आया माँगने अभिसार<br>एक क्षण को थम गए डैने,मन ही मन जुड़ गया था<br>समझ विश्राम का पलमैं नहीं आया तुम्हारे द्वार<br>पर प्रबल संघर्ष बनकर,पथ ही मुड़ गया था ।।<br><br>आ गई आँधी सदल-बल।
देख मेरे पंख चल, गतिमय<br>लता भी लहलहाई<br>पत्र आँचल में छिपाए मुख-<br>कली भी मुस्कराई ।<br><br> एक क्षण को थम गए डैने,<br>समझ विश्राम का पल<br>पर प्रबल संघर्ष बनकर,<br>आ गई आँधी सदल-बल ।<br><br> डाल झूमी, पर न टूटी,<br>किंतु पंछी उड़ गया था<br>मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार<br>पथ ही मुड़ गया था ।।<br>था।।<br/poem>