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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
मौसियाँदिल्ली की तस्वीर</div>
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रचनाकार: [[अनामिकारमेश रंजक]]
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<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
वे बारिश में धूप की तरह आती हैं -–मुँह देखा आचरण यहाँ काथोड़े समय के लिए और अचानकबोझिल वातावरण यहाँ काहाथ झूठे हैं अख़बार यहाँ के बुने स्वेटर, इन्द्रधनुष, तिल के लड्डूऔर सधोर की साड़ी लेकरअन्धा है जागरण यहाँ कावे आती घने धुँधलके में डूबी हैं झूला झुलानेपहली मितली सीमाएँ परिवेश की ख़बर पाकरऔर गर्भ सहलाकरलेती हैं अन्तरिम रपटगृहचक्र, बिस्तर और खुदरा उदासियों यह महान नगरी है मेरे देश की
झाड़ती हैं जाले, संभालती हैं बक्सेहै तो राजनीति की पुस्तकमेहनत से सुलझाती हैं भीतर तक उलझे बाललेकिन कूटनीति में जड़ हैकर देती हैं चोटी-पाटीहर अध्याय लिखा है आधाऔर डाँटती भी जाती हैं कि री पगली तूकिस धुन आधे में रहती आधी गड़बड़ हैकि बालों की गाँठें भी तुझसे चमकीला आवरण यहाँ काठीक उल्टा है व्याकरण यहाँ का शब्द-शब्द से निकलती नहीं ।फूट रही है गन्ध विषैले द्वेष की यह महान नगरी है मेरे देश की
बालों के बहानेधूप बड़ी बेशरम यहाँ कीवे गाँठें सुलझाती हैं जीवन चाँदी कीकरती हैं परिहास, सुनाती प्यासी हैं क़िस्सेरातेंऔर फिर हँसतीजीती है अधमरी रोशनीसुन-हँसातीसुन कर अधनंगी बातेंदबी-सधी आवाज़ में बताती जाती सुबहें हैं -–चालाक यहाँ कीचटनी-अचार-मूंग-बड़ियाँ और बेस्वाद सम्बन्ध शामें हैं नापाक यहाँ कीचटपटा बनाने के गुप्त मसाले और नुस्खे -–सारी उन तकलीफ़ों के जिन दोपहरी मेज़ों परफैलाती बातें उपदेश कीध्यान भी नहीं जाता औरों का । यह महान नगरी है मेरे देश की
आँखों के नीचे धीरे-धीरेउजली है पोशाक बदन परजिसके पसर जाते हैं साएरोज़ी है साँवली यहाँ कीऔर गर्भ से रिसते हैं महीनों चुपचाप -–ख़ून सत्य अहिंसा के आँसू-सेपँखों परचालीस के आसपास के अकेलेपन के उनउड़ती है धाँधली यहाँ कीकाले नागिन-कत्थई चकत्तों कासी चलती ख़ुदगर्ज़ीमौसियों के वैद्यक में चादर एक सैकड़ों दर्ज़ीएक ही इलाज बिकती है -–टोपियाँ हज़ारों अवसरवादी वेश कीहँसी और कालीपूजाऔर पूरे मोहल्ले यह महान नगरी है मेरे देश की अम्मागिरी ।
बीसवीं शती की कूड़ागाड़ीछू कर चरण भाग्य बनते हैंलेती गई खेत से कोड़कर अपनेप्रतिभा लँगड़ा कर चलती हैजीवन हमदर्दी कुर्सी के आगे मगरमच्छ आँखें मलती है आदम, आदमख़ोर यहाँ के रखवाले हैं चोर यहाँ के जिन्हें सताती है चिन्ता कोठी के श्रीगणेश की कुछ ज़रूरी चीज़ें यह महान नगरी है मेरे देश की जिसने आधी उमर काट दीइधर-उधर कैंचियाँ चलातेजैसे मौसीपन, बुआपन, चाचीपन्थीगोल इमारत की धाई छूउसके पाप,पुण्य हो जाते गढ़ते हैं कानून निराले ये लम्बे नाख़ूनों वाले देसी होठों से करते हैं बातें सदा विदेश कीअम्मागिरी मग्न सारे भुवन यह महान नगरी है मेरे देश की
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