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अन्धा है जागरण यहाँ का
 
अन्धा है जागरण यहाँ का
 
घने धुँधलके में डूबी हैं सीमाएँ परिवेश की
 
घने धुँधलके में डूबी हैं सीमाएँ परिवेश की
                यह महान नगरी है मेरे देश की
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यह महान नगरी है मेरे देश की
  
 
है तो राजनीति की पुस्तक
 
है तो राजनीति की पुस्तक
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हर अध्याय लिखा है आधा
 
हर अध्याय लिखा है आधा
 
आधे में आधी गड़बड़ है
 
आधे में आधी गड़बड़ है
        चमकीला आवरण यहाँ का
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चमकीला आवरण यहाँ का
        उल्टा है व्याकरण यहाँ का
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        शब्द-शब्द से फूट रही है गन्ध विषैले द्वेष की
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उल्टा है व्याकरण यहाँ का
                          यह महान नगरी है मेरे देश की
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शब्द-शब्द से फूट रही है गन्ध विषैले द्वेष की
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यह महान नगरी है मेरे देश की
  
 
धूप बड़ी बेशरम यहाँ की
 
धूप बड़ी बेशरम यहाँ की
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जीती है अधमरी रोशनी
 
जीती है अधमरी रोशनी
 
सुन-सुन कर अधनंगी बातें
 
सुन-सुन कर अधनंगी बातें
        सुबहें हैं चालाक यहाँ की
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सुबहें हैं चालाक यहाँ की
        शामें हैं नापाक यहाँ की
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        दोपहरी मेज़ों पर फैलाती बातें उपदेश की
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शामें हैं नापाक यहाँ की
                    यह महान नगरी है मेरे देश की
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दोपहरी मेज़ों पर फैलाती बातें उपदेश की
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यह महान नगरी है मेरे देश की
  
 
उजली है पोशाक बदन पर
 
उजली है पोशाक बदन पर
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सत्य अहिंसा के पँखों पर
 
सत्य अहिंसा के पँखों पर
 
उड़ती है धाँधली यहाँ की
 
उड़ती है धाँधली यहाँ की
        नागिन-सी चलती ख़ुदगर्ज़ी
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        चादर एक सैकड़ों दर्ज़ी
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नागिन-सी चलती ख़ुदगर्ज़ी
        बिकती है टोपियाँ हज़ारों अवसरवादी वेश की
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चादर एक सैकड़ों दर्ज़ी
                        यह महान नगरी है मेरे देश की
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बिकती है टोपियाँ हज़ारों अवसरवादी वेश की
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यह महान नगरी है मेरे देश की
  
 
छू कर चरण भाग्य बनते हैं
 
छू कर चरण भाग्य बनते हैं
 
प्रतिभा लँगड़ा कर चलती है
 
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हमदर्दी कुर्सी के आगे
 
हमदर्दी कुर्सी के आगे
        मगरमच्छ आँखें मलती है
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        आदम, आदमख़ोर यहाँ के
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आदम, आदमख़ोर यहाँ के
        जिन्हें सताती है चिन्ता कोठी के श्रीगणेश की
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रखवाले हैं चोर यहाँ के
                          यह महान नगरी है मेरे देश की
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जिसने आधी उमर काट दी
 
जिसने आधी उमर काट दी
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गोल इमारत की धाई छू
 
गोल इमारत की धाई छू
 
उसके पाप, पुण्य हो जाते
 
उसके पाप, पुण्य हो जाते
        गढ़ते हैं कानून निराले
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गढ़ते हैं कानून निराले
        देसी होठों से करते हैं बातें सदा विदेश की
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ये लम्बे नाख़ूनों वाले
                      यह महान नगरी है मेरे देश की  
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देसी होठों से करते हैं बातें सदा विदेश की
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यह महान नगरी है मेरे देश की  
 
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13:33, 11 अगस्त 2014 का अवतरण

दिल्ली की तस्वीर

रचनाकार: रमेश रंजक

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मुँह देखा आचरण यहाँ का बोझिल वातावरण यहाँ का झूठे हैं अख़बार यहाँ के अन्धा है जागरण यहाँ का घने धुँधलके में डूबी हैं सीमाएँ परिवेश की यह महान नगरी है मेरे देश की

है तो राजनीति की पुस्तक लेकिन कूटनीति में जड़ है हर अध्याय लिखा है आधा आधे में आधी गड़बड़ है चमकीला आवरण यहाँ का

उल्टा है व्याकरण यहाँ का शब्द-शब्द से फूट रही है गन्ध विषैले द्वेष की यह महान नगरी है मेरे देश की

धूप बड़ी बेशरम यहाँ की चाँदी की प्यासी हैं रातें जीती है अधमरी रोशनी सुन-सुन कर अधनंगी बातें सुबहें हैं चालाक यहाँ की

शामें हैं नापाक यहाँ की दोपहरी मेज़ों पर फैलाती बातें उपदेश की यह महान नगरी है मेरे देश की

उजली है पोशाक बदन पर रोज़ी है साँवली यहाँ की सत्य अहिंसा के पँखों पर उड़ती है धाँधली यहाँ की

नागिन-सी चलती ख़ुदगर्ज़ी चादर एक सैकड़ों दर्ज़ी बिकती है टोपियाँ हज़ारों अवसरवादी वेश की यह महान नगरी है मेरे देश की

छू कर चरण भाग्य बनते हैं प्रतिभा लँगड़ा कर चलती है हमदर्दी कुर्सी के आगे मगरमच्छ आँखें मलती है

आदम, आदमख़ोर यहाँ के रखवाले हैं चोर यहाँ के जिन्हें सताती है चिन्ता कोठी के श्रीगणेश की यह महान नगरी है मेरे देश की

जिसने आधी उमर काट दी इधर-उधर कैंचियाँ चलाते गोल इमारत की धाई छू उसके पाप, पुण्य हो जाते

गढ़ते हैं कानून निराले ये लम्बे नाख़ूनों वाले देसी होठों से करते हैं बातें सदा विदेश की यह महान नगरी है मेरे देश की