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ये छुड़ाता है घर, गाँव, सखियाँ 'रक़ीब' | ये छुड़ाता है घर, गाँव, सखियाँ 'रक़ीब' |
16:55, 16 अगस्त 2014 का अवतरण
फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं
दो बड़ी कुर्सियाँ, शामियाने में हैं
जब, जहाँ चाहिये, बस लगा लीजिये
अनगिनत ख़ूबियाँ, शामियाने में हैं
साथ सखियों के मिलकर सताती हैं जो
चुलबुली भाभियाँ, शामियाने में हैं
सालियाँ लाएंगी, नेग दो, वर्ना ख़ुद,
ढूंढ लो, जूतियाँ, शामियाने में हैं
प्यार की फब्तियाँ, प्यार की गालियाँ
रात भर मस्तियाँ, शामियाने में हैं
वक़्त-ए-रुख़सत है अब जा रही है दुल्हन
हर तरफ़ सिसकियाँ, शामियाने में हैं
ये छुड़ाता है घर, गाँव, सखियाँ 'रक़ीब'
बस यही ख़ामियाँ शामियाने में हैं