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"आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब | आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब | ||
− | हालाँकि उस ने बारहा अपने हिलाए लब | + | हालाँकि उस ने बारहा अपने हिलाए लब |
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चेहरे से जब नक़ाब हवा ने उलट दिया | चेहरे से जब नक़ाब हवा ने उलट दिया | ||
− | देखा मुझे तो | + | देखा मुझे तो दाँत से उसने दबाए लब |
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− | + | मेरी तलाश पूरी हुई देखकर उसे | |
− | आँखों से आँखें चार हुईं मुस्कुराए लब | + | आँखों से आँखें चार हुईं मुस्कुराए लब |
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− | + | रूदादे-ग़म सुनाऊँ तो किसको सुनाऊँ मैं ? | |
− | इज़हारे ग़म को | + | इज़हारे ग़म को यूँ तो बहुत तिलमिलाए लब |
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− | अश्कों का एक दरिया मिला | + | अश्कों का एक दरिया मिला रेगज़ार में |
− | + | संजीदगी की धुन पे बहुत गुनगुनाए लब | |
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− | चमकी लगाई | + | लाली लगा के होंठ पे चमकी लगाई जब |
− | तारों भरे गगन की तरह | + | तारों भरे गगन की तरह झिलमिलाए लब |
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− | + | दिल में 'रक़ीब' खोट थी शायद इसीलिए | |
− | + | इज़हारे इश्क़ करते हुए थरथराए लब | |
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18:27, 17 अगस्त 2014 का अवतरण
आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब
हालाँकि उस ने बारहा अपने हिलाए लब
चेहरे से जब नक़ाब हवा ने उलट दिया
देखा मुझे तो दाँत से उसने दबाए लब
मेरी तलाश पूरी हुई देखकर उसे
आँखों से आँखें चार हुईं मुस्कुराए लब
रूदादे-ग़म सुनाऊँ तो किसको सुनाऊँ मैं ?
इज़हारे ग़म को यूँ तो बहुत तिलमिलाए लब
अश्कों का एक दरिया मिला रेगज़ार में
संजीदगी की धुन पे बहुत गुनगुनाए लब
लाली लगा के होंठ पे चमकी लगाई जब
तारों भरे गगन की तरह झिलमिलाए लब
दिल में 'रक़ीब' खोट थी शायद इसीलिए
इज़हारे इश्क़ करते हुए थरथराए लब