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हवा अकेली / रमेश रंजक

1 byte removed, 17:30, 17 अगस्त 2014
<poem>
भरे गाल पर धरे हथेली
खिड़की म,एं में बैठी अलबेली
सोच रही है जाने क्या-क्या
हवा अकेली शाम की
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