"किसान-बच्चों का गीत / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं । | हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं । | ||
भरी थकन में सोते फिर भी — | भरी थकन में सोते फिर भी — | ||
− | + | उठते बड़े सवेरे हैं ।। | |
धरती की सेवा करते हैं | धरती की सेवा करते हैं | ||
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लू हो चाहे ठण्ड सयानी | लू हो चाहे ठण्ड सयानी | ||
चाहे झर-झर बरसे पानी | चाहे झर-झर बरसे पानी | ||
− | + | ये तो मौसम हैं हमने | |
− | + | तूफ़ानों के मुँह फेरे हैं । | |
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।। | हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।। | ||
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दूर शहर से रहने वाले | दूर शहर से रहने वाले | ||
सीधे-सादे, भोले-भाले | सीधे-सादे, भोले-भाले | ||
− | + | रखवाले अपने खेतों के | |
− | + | जिनमें बीज बिखेरे हैं । | |
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।। | हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।। | ||
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धरती को साड़ी पहनाते | धरती को साड़ी पहनाते | ||
दूर-दूर तक भूख मिटाते | दूर-दूर तक भूख मिटाते | ||
− | + | मुट्ठी पर दानों को रखकर | |
− | + | कहते हैं बहुतेरे हैं | |
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।। | हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।। | ||
भरी थकन में सोते फिर भी | भरी थकन में सोते फिर भी | ||
− | + | उठते बड़े सवेरे हैं । | |
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11:51, 19 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।
भरी थकन में सोते फिर भी —
उठते बड़े सवेरे हैं ।।
धरती की सेवा करते हैं
कभी न मेहनत से डरते हैं
लू हो चाहे ठण्ड सयानी
चाहे झर-झर बरसे पानी
ये तो मौसम हैं हमने
तूफ़ानों के मुँह फेरे हैं ।
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।।
खेत लगे हैं अपने घर से
हमको गरज नहीं दफ़्तर से
दूर शहर से रहने वाले
सीधे-सादे, भोले-भाले
रखवाले अपने खेतों के
जिनमें बीज बिखेरे हैं ।
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।।
हाथों में लेकर हल-हँसिया
गाते नई फ़सल के रसिया
धरती को साड़ी पहनाते
दूर-दूर तक भूख मिटाते
मुट्ठी पर दानों को रखकर
कहते हैं बहुतेरे हैं
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।।
भरी थकन में सोते फिर भी
उठते बड़े सवेरे हैं ।