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(राग वागेश्री-ताल कहरवा)
मेरे अखिल विश्व-जीवन के तुम ही एकमात्र हो अर्थ।
बिना तुहारे मेरा, अखिल विश्वका सारा जीवन व्यर्थ॥
अर्थ-हीन मैं होता हूँ यदि अर्थ-हीन जगमें आसक्त।
वह है होना प्राण-हीनका प्राणहीनमें ही अनुरक्त॥
केवल तुहें साथ लेकर मैं, जो तुम हो मेरे ‘पर-अर्थ’।
मिलूँ अर्थवाला मैं तुमसे, करूँ रसास्वादन अव्यर्थ॥
दो तुम मुझे सत्य यह, दो तुम मुझे रसास्वादन-संयोग।
नित्य तृप्त मैं, नित अतृप्त रह करता रहूँ दिव्य-रस-भोग॥