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"समय के हाशिए / महेश उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर

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कहाँ तक झेलें समय के हाशिए
 
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ख़ून छोड़ा, हो गए मज़दूर
 
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14:16, 22 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

दिन उगा
कपड़े पहनकर चल दिए
कहाँ तक झेलें समय के हाशिए

पेट की ख़ातिर हुए मजबूर
ख़ून छोड़ा, हो गए मज़दूर

चल पड़े लम्बी बहर के काफ़िए
चिट्ठियाँ लेकर चलें ज्यों डाकिए ।