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"मेरे परम सुखके धाम / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर

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  (राग पीलू-तीन ताल)

 मेरे परम सुखके धाम।
 बसत मेरे उर निरंतर प्रान-धन घनस्याम॥
 नित्य नव सुंदर मनोहर नित्य परमानंद।
 नित्य नूतन मधुरतम लीला करत स्वच्छंद॥
 रह्यौ नहिं कछु और हिय में लोक अरु परलोक।
 मिटे सारे द्वन्द्व जग के, हटे भय अरु सोक॥
 रहे होय स्वरूप मेरे, खिली प्रभु की कांति।
 नित्य आत्यंतिक परम सुख, नित्य सास्वत सांति॥