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"मैं धूप का टुकड़ा नहीं / रजत कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
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नापूँगा पहाड़ों की दुर्गम चोटियाँ | नापूँगा पहाड़ों की दुर्गम चोटियाँ | ||
अँधेरे को नाथकर चाँद से बातें करूँगा | अँधेरे को नाथकर चाँद से बातें करूँगा |
14:45, 26 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
मैं धूप का टुकड़ा नहीं जो
आँगन में फुदककर लौट जाऊँगा
मैं तो धरती के प्राँगण में खुलकर खेलूँगा
चौकड़ी भरूँगा हिरनी-सा वन-प्रान्तर में
नापूँगा पहाड़ों की दुर्गम चोटियाँ
अँधेरे को नाथकर चाँद से बातें करूँगा
मेरी रगों में सूर्य के जाए
अन्नदाता का ख़ून है
मेरी जड़ों में गर्माहट है
महानदी की कोख की
ग्रीष्म हो बारिश हो या सर्दी
देह की ठण्डी परतें तोड़
पसीना ओगराऊँगा
मैं धूप का टुकड़ा नहीं
जो आँगन में फुदककर लौट जाऊँगा ।